Rigveda Sukta 10.191 >
१०,१९१.०१ संसमिद्युवसे वृषन्नग्ने विश्वान्यर्य आ ।
१०,१९१.०१ इळस्पदे समिध्यसे स नो वसून्या भर ॥
१०,१९१.०२ सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् ।
१०,१९१.०२ देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ॥
१०,१९१.०३ समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम् ।
१०,१९१.०३ समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि ॥
१०,१९१.०४ समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः ।
१०,१९१.०४ समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ॥
Rigveda Hymn 10.191 >
RV_10.191.01.1{49} sam-samid yuvase vrsannagne visvanyarya a
RV_10.191.01.2{49} ilas padesamidhyase sa no vasunya bhara
RV_10.191.02.1{49} sam gachadhvam sam vadadhvam sam vo manamsi janatam
RV_10.191.02.2{49} deva bhagam yatha purve samjanana upasate
RV_10.191.03.1{49} samano mantrah samitih samani samanam manah saha cittamesam
RV_10.191.03.2{49} samanam mantramabhi mantraye vah samanena vohavisa juhomi
RV_10.191.04.1{49} samani va akutih samana hrdayani vah
RV_10.191.04.2{49} samanamastu vomano yatha vah susahasati